श्रीराम मंदिर निर्माण भूमि पूजन अवसर पर प्रसंगवश *
छतरपुर। 5 अगस्त 2020 को वह स्वप्न पूर्ण होने जा रहा है, जो भारत रूपी पवित्र भूमि की संततियों की अस्मिता से जुड़ा है, जिसके लिए इस देश के कई हुतात्माओं ने अपने तन-मन-धन अर्पित कर दिया। आज सही अर्थों में उन सभी को आदरांजलि देने का समय है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले की बात करें तो यहां से राम मंदिर आंदोलन में पं. गणेश प्रसाद मिश्र ने न सिर्फ सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की थी बल्कि तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष डॉ मुरली मनोहर जोशी के साथ एकता यात्रा में शामिल होकर कश्मीर तक गए। इसके बाद जब मुगलों की गुलामी का दाग धोने की बारी आई तो 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या पहुँच गए। केवल दो कारसेवक ही हिम्मत के साथ पहुँच पाये थे। एक थे प. गणेश प्रसाद मिश्र जी व दूसरे श्री साधुराम जी मिश्र हरपालपुर वाले।सदियों पुराने गुलामी के प्रतीक को हमेशा के लिए मिटाने के लिए श्रीराम मन्दिर आंदोलन अपने चरम पर पहुँचा तो पं. गणेश प्रसाद मिश्र उपाख्य दद्दा जी भी 68 वर्ष की आयु में उस यज्ञ में आहुति डालने के लिए अयोध्या में मौजूद थे। दद्दा ने भी ‘एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो’ के नारे के साथ बाबरी ढांचे को तोड़ने में हिस्सा लिया और गर्व के उस क्षण की यादों को साझा करने के लिए उसकी ईंटें अपने साथ अपने गाँव धवर्रा ले आए। ये ईंटें लगातार दद्दाजी के चाहने वालों को याद दिलाती रहती हैं कि अयोध्या का वो महायज्ञ अब भी अधूरा है, जिसमें दद्दा जी ने तो अपना जीवन होम कर दिया लेकिन आने वाली पीढ़ियों को भगवान श्रीराम का भव्य मन्दिर बनाकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उस स्वयं सेवक के सपनों को साकार करना है जिसको पूरा करने में दद्दाजी लाखों दूसरे साथियों के साथ जीवन भर जुटे रहे। दद्दा जी 1990 में तब पहले अयोध्या आंदोलन में भी कारसेवा में अयोध्या में ही पंहुच गये थे जब कोठारी बंधुओं का बलिदान हुआ था, तो वह उनके निकट ही रहे। बाद में 1991 में सत्याग्रह आंदोलन में भी उन्होंने धवर्रा के आस पास के 154 लोगों के साथ अयोध्या में सामूहिक गिरफ़्तारियाँ भी दीं थीं। उस समय दद्दा जी की धर्मपत्नी श्रीमती शांति मिश्रा भी साथ में कंधे से कंधा मिलाकर जय श्रीराम का उद्घोष कर रहीं थीं। इतना ही नहीं दद्दा जी की बड़ी बेटी श्रीमती आशा रावत व उनके इकलौते पुत्र डॉ. राकेश मिश्र ने भी मंदिर आंदोलन में गिरफ़्तारी दी थी।आज अनेक लोग धवर्रा के नजदीक के उस समय की यातनाओं को देखकर सहम जाते हैं, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव द्वारा दी जा रहीं थीं।आखिरकार वह क्षण आ ही गया जब देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी मंदिर निर्माण की आधारशिला रखेंगे। राम मंदिर आंदोलन के ऐसे अनेक तपस्वी मनीषियों को शत-शत नमन.. व शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि !!
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