अर्थव्यवस्था में उछाल के बावजूद चुनौतियां अभी बाकी कृष्णमोहन झा/
दुनिया में कोरोनावायरस के प्रकोप ने अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया था जिनमें भारत भी शामिल था। कोरोना की पहली लहर के प्रकोप से छुटकारा मिलने के पूर्व ही भारत में दूसरी लहर दस्तक दे चुकी थी और दुर्भाग्य से दूसरी लहर की विभीषिका पहली लहर से कहीं अधिक भयावह थी । दूसरी लहर ने इतनी तेज रफ्तार से अपना प्रकोप दिखाना शुरू कियाा था कि किसी को भी संभलने का मौका ही नहीं मिला। पहली लहर के मंद पड़ने के बाद जब हमारी अर्थव्यवस्था में भी सुधार के संकेत मिलने लगे थे तभी दूसरी लहर की विभीषिका ने इस आशंका को जन्म दिया कि हमारी अर्थव्यवस्था पर दूसरी लहर का प्रभाव लंबे समय तक बना रहेगा।कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर ऐसी राय व्यक्त की लेकिन कोरोना संकट से उपजी विषय परिस्थितियों में भी मोदी सरकार ने अपना आत्मविश्वास नहीं खोया और अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए द्विगुणित उत्साह के साथ प्रयास शुरू कर दिए । विश्वव्यापी कोरोना संकट के दुष्प्रभावों से देश की अर्थव्यवस्था को निरापद रखने के लिए मोदी सरकार ने विगत डेढ़ वर्षों में अनेक साहसिक कदम उठाए । सरकार के इन साहसिक कदमों से उद्योग जगत में भी नया उत्साह जागा और उत्पादक गतिविधियों ने रफ्तार पकड़ी जिसके सुखद परिणाम भी जल्द ही सामने आने लगे । आज स्थिति यह है कि अर्थव्यवस्था में एक बार फिर वैसी ही स्थिरता आती दिखाई देने लगी है जैसी कि लगभग डेढ़ साल पूर्व देश में कोरोना संकट के शुरू होने के पहले थी।अर्थशास्त्रियों का मानना है कि निकट भविष्य में कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका अगर सच साबित होती भी है तब भी उसके भारतीय अर्थव्यवस्था इस बार उसके दुष्प्रभावों से मुक्त रहेगी क्योंकि परंतु केंद्र और सरकारों ने तीसरी लहर के दुष्प्रभावों को न्यूनतम स्तर पर बनाए रखने के लिए पहले ही व्यापक तैयारियां कर रखी हैं । देश में टीकाकरण अब महाअभियान का रूप ले चुका है और लोग भी पहले से अधिक जागरूक हो चुके हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि टीकाकरण महाअभियान भी भारतीय अर्थव्यवस्था को कोरोना संकट के दुष्प्रभावों से मुक्ति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है ।
देश में पिछ्ले साल कोरोना की पहली लहर के प्रकोप की शुरुआत होने पर मोदी सरकार ने जो देश व्यापी लाकडाउन लागू किया था उसकी वजह से काफी समय तक उत्पादक गतिविधियां ठप रहने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर जो नकारात्मक प्रभाव पड़ा था उसने अनेक आशंकाओं को जन्म दिया था । कुछ अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने तो उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट को देखते हुए यह अनुमान भी लगा लिया था कि लाक डाउन में सरकार ने देश में जो कठोर पाबंदियां लगाई थी उनका प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर दीर्घ काल तक बना रहेगा परंतु कोरोना की दूसरी लहर के बावजूद इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ने जिस तरह तेजी से बाउंस बैक किया है उसने अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सारे नकारात्मक अनुमान को झुठला दिया है और वही एजेंसियां भारतीय अर्थव्यवस्था में आए उछाल को मोदी सरकार की आर्थिक रणनीति की सफलता बताकर उसकी तारीफ कर रही हैं। कोरोना की दूसरी लहर के भयावह प्रकोप के बावजूद इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही ( अप्रैल-जून) में देश की विकास दर 20.1प्रतिशत दर्ज की गई । अब तो स्थिति यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में आया यह आशातीत उछाल चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में और ऊपर पहुंचने के भी अनुमान व्यक्त किए जाने लगे हैं। गौरतलब है कि विश्व बैंक ने भी अप्रैल में जारी अपनी साउथ एशिया इकोनोमिक फोकस रिपोर्ट में कहा था कि भारत में निजी खपत और निवेश बढ़ने से वित्तीय वर्ष 2021-2022में देश की विकास दर 10.1प्रतिशत के स्तर तक पहुंच सकती है जबकि इसी साल जनवरी में विश्व बैंक ने भारत की विकास दर 5.4 प्रति शत रहने की आशंका व्यक्त की थी । अब देश के अनेक अर्थशास्त्रियों भी यह मान रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में उछाल का रुख चालू वित्तीय वर्ष में इसी तरह बना रहेगा। अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जिन क्षेत्रों का योगदान महत्वपूर्ण सिद्ध होता है उनमें कृषि को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्र पिछले साल की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं । दरअसल पिछले साल देशव्यापी लाक डाउन के फैसले ने भी आर्थिक गतिविधियों को ठप कर दिया था जिसके कारण अर्थव्यवस्था को बुरे दौर से गुजरना पड़ा। केंद्र सरकार ने इस स्थिति से सबक लिया और देश में कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत होने पर लाक डाउन का फैसला राज्य सरकारों पर छोड़ दिया । राज्य सरकारों ने दूसरी लहर को नियंत्रित करने की मंशा से स्थानीय स्तर पर जो पाबंदियां लगाई उनसे उत्पादक गतिविधियों पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि स्थानीय लाक डाउन की वजह से बाजार और दफ्तर भले बंद रहे परंतु कल कारखानों में उत्पादक गतिविधियां बराबर जारी रहीं। इसीलिए चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में दर्ज की गई विकास दर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए खुशखबरी लेकर आई। अर्थव्यवस्था में मजबूती आने का संकेत जुलाई और अगस्त में हुए जीएसटी संग्रह से भी लगाया जा सकता है । पहली लहर के बाद जीएसटी संग्रह में आई कमी ने सरकार की चिताओं में इजाफा कर दिया था परन्तु पिछले जुलाई अगस्त में हुए जीएसटी संग्रह से सरकार का प्रसन्न होना स्वाभाविक है। इस साल अगस्त में हुआ जीएसटी संग्रह 2020 के अगस्त माह के जीएसटी संग्रह की राशि से 30 प्रतिशत ज्यादा है। अर्थव्यवस्था में आए उछाल से एक ओर जहां विदेशी निवेशक फिर से भारत की ओर आकर्षित होने लगे हैं वहीं दूसरी ओर पश्चिमी देशों और चीन के बीच बढ़ते तनाव ने भारत के लिए निर्यात के नए अवसर पैदा किए हैं। अमेरिका और कुछ अन्य देशों ने चीन से होने वाले आयात में जो कमी की है उसका परोक्ष लाभ भारत को मिल रहा है । पिछले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारत ने जितना निर्यात किया था उससे 25 प्रतिशत अधिक निर्यात भारत ने चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में किया है । अमेरिका जैसे देश अब चीन से उन्हीं वस्तुओं का आयात करने में रुचि ले रहे हैं जिनका निर्यात करने की स्थिति में अभी भारत नहीं आ पाया है। ऐसा नहीं है कि चीन के साथ उक्त देशों के संबंधों में आई खटास के कारण ही भारत निर्यात के क्षेत्र में पहले से बेहतर स्थिति में है। बीते वर्षों में भारत की विश्वसनीयता सारी दुनिया में बढ़ी है । छोटे, गरीब और अन्य विकासशील देश अब चीन के बजाय भारत से आयात को तरजीह दे रहे हैं । प्रधानमंत्री पद की बागडोर नरेन्द्र मोदी के पास आने के बाद अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की विश्वसनीयता जिस तरह बढ़ी है उसका निश्चित रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलेगा।
अर्थव्यवस्था में आए उछाल से सरकार की खुशी स्वाभाविक है परंतु अभी यह मान लेना उचित नहीं होगा कि हमने सारी चुनौतियों से पार पा लिया है । बढ़ती मंहगाई पर काबू पाने के लिए उसे प्रभावी कदम उठाने होंगे। इसके लिए कारगर रणनीति और इच्छा शक्ति की आवश्यकता है। जनता सरकार के इस तर्क को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि अगर महंगाई को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए गए तो उससे विकास प्रभावित हो सकता है। कुछ क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भले बढ़े हों परन्तु कोरोना संकट ने लाखों लोगों के हाथों से काम छीन लिया है। उनके आर्थिक पुनर्वास की चिंता भी सरकार को करना है। अर्थव्यवस्था में आए उछाल से सरकार को आत्म विश्वास बढ़ा है इसलिए आने वाले समय में आम आदमी की खुशहाली के लिए सरकार के पास निश्चित रूप से कुछ योजनाएं होंगी। हमें उनकी प्रतीक्षा करना चाहिए।
(लेखक डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)
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