काश बच्चों को बड़ों से पहले लग गए होते टीके...
कोविड-19 के टीकों को लेकर जिस तरह से पहले युवाओं में और अब किशोरों में उत्साह देखा जा रहा है उससे यह अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है कि अगर इन युवाओं और किशोरों को पहले टीके लगा दिए गए होते तो संभवतः वह मशक्कत ना करनी पड़ती जिस तरह की मशक्कत बड़े लोगों को टीके लगाने में प्रशासन को करनी पड़ी । 15 वर्ष से 18 वर्ष की आयु वर्ग के किशोर व किशोरियों को 3 जनवरी से प्रारंभ हुए टीकाकरण के कार्य को लेकर जिस तरह से उत्साह व उत्सुकता देखी गई वह काबिले तारीफ है, सुबह से ही लंबी-लंबी कतारों में लगे यह बच्चे अपनी बारी के आने का इंतजार कर रहे हैं तथा प्रशासन को भी संभाल पाना मुश्किल हो रहा है, जबकि हम अगर इसके पहले वाले टीकाकरण कार्य की ओर नजर डालें तो जब बड़ों को टीके लगाए जा रहे थे तब घर घर से लोगों को लाना पड़ रहा था मनाना पड़ रहा था और प्रशासन को भारी मशक्कत करनी पड़ी तथा हर टीकाकरण केंद्र को एक टारगेट दिया जाता था टारगेट को पूरा करने के लिए अधिकारियों के ऊपर भारी मानसिक तनाव भी रहता था क्योंकि उन्हें ऊपर जवाब भी देना है ऐसी विकराल परिस्थितियों में अधिकारियों ने कार्य किया तब कहीं जाकर टीकाकरण का कार्य संपन्न हो सका, जबकि इसके उलट अगर हम देखें तो युवाओं तथा किशोर व किशोरियों में जिस तरह से उत्साह का संचार देखा गया और अत्याधिक उत्सुकता के साथ टीकाकरण केंद्र में जब भीड़ देखी गई तो प्रतीत हुआ कि वास्तव में आज का युवा और किशोर कितना जागरूक है । कुछ भी हो कोविड-19 के टीकाकरण के कार्य से हमें युवाओं और किशोरों से सीख लेने की आवश्यकता है कि यह किस तरह से आज डिजिटल इंडिया के जमाने के युवक-युवतियों अपने स्वास्थ्य के प्रति कितने जागरूक हैं और सजग भी हैं । राजीव शुक्ला पत्रकार खजुराहो
No comments