यह साप्ताहिक कालम है जो प्रत्येक रविवार को भेजा जाता है तथा जो अनुबंध के आधार पर प्रत्येक सोमवार को देश के 12 राज्यों के 36 स्थापित राष्ट्रीय समाचार पत्रो मेंं निरंतर प्रकाशित होता है भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया समरसता की औपचारिकताओं के मध्य खुशियों की ईद
देश में कट्टरता की आग शान्त नहीं हो रही है। नित नये प्रकरण सामने आ रहे हैं। अनेक राज्यों में धर्म के नाम पर वर्चस्व कायम करने के प्रयास तेज हो रहे हैं। राजस्थान उच्च न्यायालय की जोधपुर खण्डपीठ के दो मुंशियों के बीच पैगम्बर विवाद को लेकर पहले वाट्सएप पर कठोर शब्दों में जंग हुई और बाद में न्यायालय परिसर में सामना होने पर कन्हैयालाल जैसी हालत करने देने की प्रत्यक्ष धमकी दी गई। न्याय के मंदिर में भी कट्टरता के पांव पसाने के कारण के पीछे उच्चतम न्यायालय के जज जस्टिस सूर्यकान्त और जस्टिस जेबी पारदीवाला की टिप्पणी को उत्तरदायी मानने वालों की कमी नहीं है। देश की सर्वोच्च अदालत के विव्दान न्यायाधीशों ने जिन शब्दों में अपनी राय व्यक्त करते हुए देश के वर्तमान हालातों के लिए नूपुर शर्मा को एकमात्र जिम्मेवार ठहराया है, उसे लेकर नागरिको के एक वर्ग में खासी नाराजगी देखने को मिल रही है। अनेक समीक्षाओं में तो इस भारतीय न्याय का काला अध्याय तक निरूपित किया गया है। इस टिप्पणी के बाद से न्याय, न्यायालय और न्यायाधीशों को लेकर देश-दुनिया में चर्चाओं का बाजार गर्म है। इसी क्रम में राजस्थान उच्च न्यायालय की जोधपुर खण्डपीठ में दो मुंशियों का मामला अदालत परिसर में ही गर्मा गया। आई सपोर्ट नूपुर शर्मा, का स्टेटस लगाने वाले मंशी महेन्द्र सिंह को सोहेल खान ने सामना होते ही कहा कि तुमने जो किया अच्छा नहीं किया, उदयपुर के कन्हैयालाल जैसा हाल कर दूंगा। इस मामले में कुडी भगतासनी पुलिस ने सोहेल खान से पूछतांछ करने की बात कही है। यह केवल एक घटना नहीं है जो उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी के बाद सामने आई हो, इस तरह की अनेक स्थितियां देश भर में निर्मित हो रहीं है। कन्हैयालाल की निर्मम हत्या के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री ने जिस तरह से गैर जिम्मेदाराना बयान देते हुए प्रधानमंत्री पर दारोमदार थोपने का प्रयास किया था, उससे गहलोत सरकार की मानसिता और सोच को कट्टरता से जोडकर देखने वालों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। विदेशों में भी भारतीय उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी का विश्लेषण किया जा रहा है। न्याय की पारदर्शितता के लिये मशहूर हमारे देश को जहां इस्लामिक राष्ट्र निशाना बना रहे हैं वहीं पश्चिमी सभ्यता में डूबे देश भी नूपुर शर्मा के विरोध में हुंकार भर रहे हैं। कुछ ऐसे राष्ट्र भी हैं जो सत्य को सत्य कहने का साहस करते हैं। उन राष्ट्रों के अनेक राजनायिकों ने पैगम्बर पर कथित टिप्पणी का विस्त्रित समीक्षा करते हुए नूपुर शर्मा के समर्थन में बयान जारी किया है। ऐसे में सनातन की रक्षा में कट्टरता के जुल्मों की पराकाष्ठा झेलने वाले सिख गुरुओं के समर्थकों का एक गुट गुरुओं पर जुल्म करने वालों की गोद में बैठा दिख रहा है। ब्रिटेन की डिफेन्स सिख नटवर्क यानी डीएसएन जिसे सिख मिलिट्री भी कहा जाता है, का पाकिस्तान दौरा, पाकिस्तान के सेना प्रमुख के साथ खास मुलाकात और इस्लामिक देशों की सोच के साथ आत्मसात करने का वातावरण निर्मित किया जा रहा है। दिखावे के लिए तो पाकिस्तान इसे सर्व धर्म संदेश के नाम से प्रचारित करने में जुटा है जबकि इतिहास गवाह है कि गले मिलने का आमंत्रण देने वाला यह देश पीठ के पीछे खंजर छुपाकर रखने और वार करने खासा माहिर है। पाक सेना के प्रमुख जावेद बाजवा इस मुलाकात को लेकर काफी उत्साहित दिखे। यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि डीएसएन ने हाल में ही आपरेशन ब्लू को लेकर एक कडी टिप्पणी की थी। जब इस दौरे को लेकर प्रतिक्रियायें तेज हुईं तो ब्रिटिश हाई कमीशन के प्रवक्ता ने सफाई देते हुए कहा कि ये दौरा प्रतिनिधि मण्डल के सदस्यों के लिए ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के स्थानों की यात्रा करने के लिए एक अवसर की तरह है। जब कि दुनिया जानती है कि अरब देशों से फिरता और जकात के रूप में निकाली जाने वाली खैरात का ज्यादातर उपयोग भारत के अन्दर अस्थिरता, अशान्ति और अराजकता फैलाने के लिए हो रहा है। इस तरह के अनेक सर्वे समय-समय पर सामने आते रहते हैं। वास्तविकता तो यह है कि इस सबके पीछे अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, चीन जैसे देशों की महात्वपूर्ण भूमिका रहती है जो भारत को आत्म निर्भर, विकसित और साधन सम्पन्न नहीं बनने देना चाहते हैं। यही देश अपने हथियारों की मण्डी के रूप में भारत को देखते हैं। इन्हीं देशों की शह पर राग कश्मीरी अलापने वाला पाकिस्तान हमेशा से ही आतंकी नृत्य करता रहा है। इस नृत्य को निहित स्वार्थो के कारण पर्दे के पीछे से देश के कुछ राजनैतिक दल और कथित बुध्दिजीवियों का समर्थन निरंतर मिलता रहा है। ऐसे भितरघातियों के कारण अब राग कश्मीरी ने पूर्ण विस्तार लेकर देश के कोने कोने में अपने आतंकी नृत्य की पाठशालायें तैयार कर लीं है। उसे अपनी शक्ति के प्रदर्शन के लिए अवसर की तलाश थी, सो भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता के रूप में नूपुर शर्मा के वक्तव्य की मनमानी व्याख्या करके आतंक का तांडव शुरू कर दिया। नूपुर शर्मा ने क्या कहा, किन परिस्थितियों में कहा, उसे किस रूप में प्रचारित किया गया, एक बात को पलक झपकते विश्व व्यापी कैसे बना दिया गया, किन लोगों ने इसे मुद्दा बनाकर उछाला, किन उत्तरदायी अधिकारियों ने अत्याधिक संवेदनशील होती स्थिति पर मनमाना रुख अख्तियार किया, इस तरह के अनेक कारकों को नजरंदाज करते हुए केवल, और केवल नूपुर शर्मा के विरोध में माहौल गर्मा दिया गया। हमारी मंशा नूपुर शर्मा का बात का समर्थन करने की कतई नहीं है परन्तु न्याय हेतु बहुआयामी विश्लेषण की आवश्यकता को रेखांकित करना अवश्य है। वर्तमान में भाजपा और गैर भाजपा शासित राज्यों के मध्य रस्साकशी चल रही है। ऐसे में यह कहना आतिशयोक्ति न होगी कि इस बार समरसता की औपचारिकताओं के मध्य सम्पन्न हुई खुशियों की ईद में किलकारियां, आत्मिक आलिंगन और हृदय की गहराइयों से निकलने वाली दुआयें कहीं खो सी गई हैं। एक वक्त था जब सभी देशवासी ईद, होली, दीपावली, क्रिशमश, प्रकाशपर्व जैसे त्यौहारों पर पूरे उत्साह से भागीदारी दर्ज करते थे, मिल जुलकर सुख-दु:ख बांटते थे और देते थे राष्ट्रीय एकता के संदेश। आज ईद के मौके पर केवल और केवल कट्टरता के दिग्दर्शन होते रहे, दिखावे की रस्मों की आदायगी होती रही और गूंजते रहे बनावटी मुस्कानों के साथ मुबारकबाद के आल्फाज। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
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