भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया कार्य प्रणाली से परखनी होगी पार्टियों की नीतियां
राजनीति के आंकडे और समीकरणों के लिए नैतिकता को दर किनार करने वाले दलों ने गुजरात में ताल ठोकना शुरू कर दी है। मतदाताओं को रिझाने के लिए साम, दाम, दण्ड और भेद के सिध्दान्तों को अपनाया जा रहा है। गुजरात के चुनावों में सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रेस ने गुजरात परिवर्तन संकल्प यात्राओं के माध्यम से मतदाताओं को रिझाने की रणनीति पर काम प्रारम्भ कर दिया है। कच्छ के भुज, सौराष्ट्र के सोमनाथ, उत्तरी गुजरात के बडगाम, दक्षिणी गुजरात के जंबूसर तथा मध्य गुजरात के बाला सिनोर से इन यात्राओं को प्रारम्भ किया जायेगा। कुल 5,432 किलोमीटर चलने वाली इन यात्राओं में 95 रैलियां की जायेंगी तथा 145 जनसभायें आयोजित करने की योजना है। वहीं आम आदमी पार्टी की मुश्किलें निरंतर बढती जा रहीं है। राज्य में अभी से गुटबाजी का माहौल बनने लगा है। असंतुष्टों की संख्या में इजाफा हो रहा है। वहीं दिल्ली के मंडोली जेल से मनी लान्ड्रिंग केस के आरोपी सुकेश चन्द्रशेखर ने पत्र धमाका कर दिया है। सुकेश ने आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविन्द केजरीवाल पर आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सभा पहुंचाने के नाम पर केजरीवाल ने 50 करोड की मांग की थी, जिसे हमने पूरा भी कर दिया था। यदि हम पर ठगी के आरोप लगाये गये हैं तो केजरीवाल महाठग है। इस पत्र को सोशल मीडिया से लेकर विभिन्न संचार माध्यमों से खूब प्रचारित किया जा रहा। वहीं आम आदमी पार्टी की पंजाब में सरकार के बनने के बाद से वहां पर खालिस्तान समर्थकों को खुला संरक्षण देने की बात करने वाले, अनेक संदर्भित घटनाओं को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत कर हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से हिमाचल के साथ तनावपूर्ण संबंधों की शुरूआत हो गई थी। खालिस्तान का नारा बुलंद करने वालों ने हिमाचल में अराजकता फैलाना, भय का माहौल बनाना तथा वहां की राज्य सरकार को चुनौती देना शुरू कर दिया था। शिमला के अतिसंवेदनशील क्षेत्र में खालिस्तान के झंडे लगाने, पंजाब से खालिस्तान के झंडे लगी गाडियों का काफिला लेकर हिमाचल में जाने तथा धमकी भरे पत्रों को भेजने जैसी घटनायें होने लगीं हैं। इन आतंकवादी घटनाओं पर अंकुश लगाने की गरज से हिमाचल की सरकार व्दारा कदम उठाते ही पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार के इशारे पर हिमाचल की गाडियों पर पंजाब में मनमाने ढंग से चालानी कार्यवाही की जाने लगी। हाल में ही हिन्दू नेता सुधीर सूरी की पंजाब पुलिस की मौजूदगी में कोट बाबा दीप सिंह निवासी संदीप सिंह सन्नी ने 32 बोर की पिस्तौल से हत्या कर दी। सुधीर सूरी मूर्तियों की बेअदवी के विरोध में अपने समर्थकों के साथ प्रदर्शन कर रहे थे। उस समय सूरी की सुरक्षा में पंजाब पुलिस के 15 जवान तैनात थे, मगर सुरक्षाकर्मियों ने न तो जबाब में गोलियां ही चलाई और न ही हिन्दू नेता को बचाने हेतु कोई प्रभावी कार्यवाही ही की। कनाडा में बैठा खालिस्तान का स्वयंभू नेता लखवीर सिंह लड्डा ने पाकिस्तान में छुपे अपने सहयोगी हरन्दिर सिंह रिंदा के साथ मिलकर इस हत्याकाण्ड को अंजाम दिलवाया और डंके की चोट पर भारत को धमकी देते हुए कहा कि यह तो अभी शुरूआत है। आम आदमी पार्टी पर खालिस्तान समर्थकों के साथ मिलकर राष्ट्र विरोधी षडयंत्र करने के आरोप भारतीय जनता पार्टी सहित अनेक सामाजिक संगठन लम्बे समय से लगाते आ रहे हैं। हिन्दू नेता की हत्या ऐसे समय पर की गई जब श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व नजदीक था। सूरी की हत्या के बाद हिन्दू संगठनों ने बंद का आह्वाहन किया तिस पर सिख तालमेल कमेटी के प्रधान हरपाल सिंह चड्डा ने भडकाऊ वक्तव्य देकर हिन्दू-सिख सौहार्द को आग लगाने का प्रयास किया। चड्डा ने हिन्दू नेता हत्या की निंदा करने के स्थान पर इस घटना को कर्मो का फल निरूपित कर दिया। मगर हिन्दू संगठनों ने संयम बरते हुए कहा कि प्रकाश पर्व पर निकाली जाने वाली शोभा यात्रा में बंद का असर नहीं होगा। कोई भी हिन्दू संगठन शोभा यात्रा के विरोध में नहीं हैं। जहां सिख समाज का स्वयंभू नेता बनकर सामने आने वाले लोग आपसी भाईचारे को समाप्त करने के षडयंत्र पर काम कर रहे हैं वहीं सहनशक्ति की सीमा के नजदीक पहुंचकर हिन्दू समाज संतुलन कायम करने में लगा है। पंजाब में फिर से पनप रहे खालिस्तान आंतकी गिरोहों के निरंतर बुलंद होते हौसलों के लिए वहां की वर्तमान सरकार को उत्तरदायी माना जा रहा है। अनेक नेताओं ने तो सूरी की हत्या का छीकरा ही पंजाब पुलिस पर फोड दिया है। उनका मानना है कि सुरक्षा घेरे में रहने वाले व्यक्ति की हत्या होना बिना मिली भगत के संभव नहीं है। यह मुद्दा गुजरात चुनावों में तेजी से काम करता नजर आ रहा है। दिल्ली सरकार पर लगने वाले आरोपों को भी अनेक संदर्भोेें के साथ जोडकर प्रमाणित करने का प्रयास किया जा रहा है। मुफ्तखोरी, लालाच और लुभावने वादों की मृगमारीचिका के पीछे मतदाताओं को दौडाने वाली पार्टियां अपनी घोषणाओं को पूरा करने की योजनाओं का खुलासा करने से निरंतर कतरा रहीं है। घोषणायें करना सरल होता है परन्तु उन्हें राज्य सरकार के संसाधनों की दम पर पूरा करना बेहद कठिन होता है। सत्ता मिलते ही केन्द्र की ओर कटोरा लेकर दौडने वाले राज्यों की सरकारें समस्याओं का समाधान न मिलने पर आम आवाम के सामने केन्द्र को कोसना शुरू कर देतीं हैं। यूं तो गुजरात में त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति दिख रही है किन्तु ओवैसी की आल इण्डिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन भी पर्दे के पीछे से अपना जाल बिछाकर मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने में लगी है। वर्तमान में चुनावों की गणित कूटनैतिक चालों से आगे बढकर षडयंत्र की सीमा में प्रवेश कर रहा है। ऐसे में मतदाताओं को चुनावी घोषणाओं की व्यवहारिक संभावनाओं को बरीकी से जानना होगा, पार्टियों की नीतियों का सामने आ रहा स्वरूप देखना होगा और प्रत्याशियों के अतीत के आधार पर लेना होगा निर्णय। तभी प्रदेशों के निवासियों को आने वाले समय में सार्थक परिणाम मिल सकेंगे। फिलहाल तो कहीं खालिस्तान का नारा बुलंद है तो कहीं मुसलमानों का मसीहा बनकर अपने झंडे के नीचे लाने की जुगाड बैठाई जा रही हैं। कही राम मंदिर और धारा 370 के कीर्तिमान रेखांकित किये जा रहे हैं तो कहीं यात्राओं से तिलिस्म पैदा करने की कोशिशें हो रहीं है। ऐसे में मतदाताओं को कार्य प्रणाली से परखनी होगी पार्टियों की नीतियां अन्यथा बाह्य आकर्षण से धोखे की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकेगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
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