सास्वत तीर्थअन्दोलन नही एक मंत्र है पर्यटन नही पवित्रता ही संस्कृति की पहचान है : भूमिपुत्रपवनघुवारा
शिखरजी पर आंदोलन का कारण भारत सरकार ने जो गजट नोटिफिकेशन क्रमांक २५४१ दिनांक ५ अगस्त २०१९ में भारत सरकार के राजपत्र मे प्रकाशित किया गया है
शाश्वततीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी को वन्य जीव अभ्यारण्य का एक भाग इको सेंसिटिव जोन मे घोषित कर फाइनल गजट जारी करने से पूर्व झारखंड के मुख्यमंत्री श्री रघुवरदास की राज्यसरकार फरवरी 2018 से अनुशंसा लेकर नोटिफिकेशन जारी किया परन्तु आपत्ति / सुझाव मांगे जाते या जैन समाज को इसकी प्रमाणिक काँपी मंत्रालय या सरकार द्वारा जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी को उपलब्ध कराई जाती, परन्तु ऐसा नहीं हुआ।
यह देश की संस्कृति आस्था पर प्रहार भारत सरकार फिर से करें विचार भारत का राजपत्र क्रमांक 2541को निरस्तीकरण गोरतलब है कि अब यह मा.प्रधानमंत्री जी द्धारा केबिनेट मीटिंग मे अनुसंशा हो ओर महामहिम राष्ट्रपति महोदय जी द्धारा अनुमति उक्त गजट नोटिफिकेशन निरस्तीकरण तभी हो सकता है
तीर्थआस्था के केंद्र होते है,मनोरंजन के नही,तीर्थ दर्शन करने गए थे,तीर्थ घूमने गए थे, में बहुत बड़ा अंतर होता है वो अंतर है प्रभु के स्थान के प्रति हमारी आस्था,विश्वास,श्रद्धा,पवित्रता।
प्रभु का स्थल आध्यात्मिक चेतना का तीर्थ है,उसे आधुनिकता से मत जोड़ों,परिणाम विध्वंस कारी होते है।गजेट नोटिफिकेशन में पृष्ठ क्रमांक २ पर गलत लिखा है कि पारसनाथ अभयारण्य का एक भाग जैन धर्म का "पवित्रतम स्थल" माना जाता है जबकि पारसनाथ का पूर्ण पहाड़ जैन तीर्थ क्षेत्र है।भूमिपुत्र पवनघुवारा ने अपने वक्तव्य मे बताया है कि जिस तरह से देश भर के आचार्य परमेष्ठी, परमपूज्य महाराज, सन्यासी, गणनी साध्वियों ,जनों के अन्दर से जो आवाज सुनाई दे रही है वह अब यह शिखर जी अन्दोलन नही एक मंत्र है पर्यटन नही पवित्रता ही संस्कृति की पहचान है विश्व मे भारत भूमि की मंत्र साधना कि महिमा सास्वत सत्य है यह आन्दोलन तो सास्वत तीर्थभूमि 20 तीर्थंकरों ने एवं करोड़ों जैन मुनि साधुओं ने मोक्ष प्राप्त किया है। के लिए है भारत सरकार से निवेदन है जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पवित्र तीर्थ स्थल ही रहने दे, पर्यटन स्थल घोषणा वापिस ले।
भूमिपुत्र पवनघुवारा
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