बुंदेलखंड गैरेज में लक्ष्मण चरित्र पर राम कथा राम का भक्त कभी किसी का अहित नहीं चाहता : संत श्री मैथिलीशरण भाई जी
छतरपुर, पद्मभूषण युग तुलसी श्री रामकिंकर जी उपाध्याय की प्रवचन परंपरा का निर्वाह करते हुए समाजसेवी जय नारायण अग्रवाल जय भैया द्वारा कई दशकों से जारी राम कथा में इस वर्ष लक्ष्मण चरित्र की व्याख्या करते हुए संत श्री मैथिलीशरण भाई जी ने कहा कि लक्ष्मण जी महाराज भगवान श्री राम के परम भक्त हैं उनका तेज आवेश क्रोध सब कुछ भगवान की लीला की पूर्ति मात्र हेतु है लक्ष्मण जी सदैव मन बुद्धि चित्त और अहंकार से परे भगवान श्री राम की सेवा में रहते हैं उनके समान मौन, धैर्य, पुरुषार्थ और समर्पण कहीं दिखाई नहीं देता है, मानस के विभिन्न प्रसंगों का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि लक्ष्मण जी महाराज की तरह राम का भक्त कभी किसी का अहित नहीं चाहता है, रावण के दूत सुक सारंग को क्षमा कर लक्ष्मण जी उन के माध्यम से रावण को ऐसा संदेश देते हैं जो कदाचित हनुमान जी और अंगद जी भी नहीं दे पाए, रावण के दूत होने के बावजूद सुक और सारंग लक्ष्मण जी का पत्र पढ़कर रावण का मनोबल बुरी तरह से तोड़ते हैं, राम के भक्त हनुमान जी, अंगद जी, विभीषण जी सभी रावण का हित चाहते हैं और उसे समझाते हैं पर जब बुद्धि भ्रष्ट होती है तो हम हित में भी अनहित देखते हैं,
विभीषण द्वारा समुद्र से प्रार्थना करने के प्रस्ताव का श्री लक्ष्मण जी विरोध नहीं करते हैं वह तो भैया राम से अपनी बात रखते है, भागवत कथा वाचको द्वारा रुकमणी हरण कहे जाने पर उन्होंने कहा कि रुकमणी जी तो भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा है हरण शब्द तो उसके भाई रुक्मी द्वारा दिया गया है जो उनका विवाह शिशुपाल से कराना चाहता था भगवान ने रुक्मणी जी का हरण नहीं अपितु वरण किया है नारद मोह की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि नारद जी हमेशा भगवान का गुणगान करते थे पर जब अपना गुणगान करने लगे तब भगवान ने उनके मोह का निवारण कर दिया, नारद जी विष्णु भगवान के पास जाने के पहले शंकर जी के पास पहुंचते हैं तब शंकर जी उन्हें भगवान के पूछे जाने पर भी कामचरित न सुनाने का उपदेश देते हैं, पर संसार में कोई हमारे हित की बात करे तो हमें खराब लगती है मैथिली शरण जी ने कहा कि सत्संग में लोग इसलिए नहीं आते क्योंकि वहां सब के हित की बात होती है भगवान नारद जी के अहंकार रूपी वृक्ष को उखाड़ने के लिए माया करते हैं भाई जी ने कहा कि अहंकार एक ऐसा पौधा है जो हृदय में बड़ी जल्दी वृक्ष का आकार ले लेता हैअहंकार से बचने के 2 उपाय
मैथिली शरण जी ने कहा कि जीवन में अहंकार से बचने के 2 उपाय हैं पहला तो यह कि अपने अहंकार को भगवान के चरणों में चढ़ा दीजिए और दूसरा यह कि सामने वाले के अहंकार की रक्षा करते रहिए भगवान सदैव भक्त के अहंकार को उखाड़ फेंकते हैं, भाई जी ने कहा कि स्केनर जिस तरह से बारकोड को कुछ सेकंड में ही पढ़ लेता है उसी तरह भगवान और भगवान के भक्त को आपको समझने में देर नहीं लगती है
कागभुसुंडि जी गरुड़ महाराज को अपने अनुभव सुनाते हुए कहते हैं कि भगवान के एक एक रोम में हजारों हजार ब्रह्मांड लटके हुए है उन्हें हम क्या अपना अहंकार बता सकते हैं, भाई जी ने उदाहरण देकर कहा कि हमारी देखने की अपनी सीमा है आसमान में तारे और हवाई जहाज हमें बहुत छोटे दिखाई देते हैं पर वस्तुतः वह विशाल होते हैं हमें लगता है कि सूर्य उदय और अस्त होता है पर सच्चाई यह है सूर्य सिर्फ हमारी आंखों से ओझल होता है
बुद्धि और भाव ही संवाद और विवाद के आधार
मैथिली शरण जी ने कहा कि जब हम बुद्धि से कोई बात कहते हैं और सामने वाला उसे भाव पूर्वक सुनता है तो यह संवाद होता है पर हमारी भावपूर्ण बात को जब सामने वाला बुद्धि से सुने तो विवाद की स्थिति बनती है हमारा बोलना लोक कल्याण और भगवान की प्रसन्नता के लिए होना चाहिए वाणी के अपव्यय से हमें बचना चाहिए श्री रामचरितमानस में शत्रुघ्न जी द्वारा कुछ भी नहीं बोला गया है क्योंकि वह तो भरत जी के अनुगामी हैं विरोध को मिटाने के लिए मौन सबसे बड़ा साधन है बड़े से बड़े शत्रु को मिटाना है तो उत्तर मत दीजिए मौन बने रहिए,
जीवन का लक्ष्य भगवान हो अपना कोई उपलक्ष्य ना बनाएं
मैथिली शरण जी ने कहा कि लक्ष्मण जी महाराज की तरह सभी का लक्ष्य भगवान श्रीराम होना चाहिए, लक्ष्मण जी का अपना कोई उपलक्ष्य नहीं है वह तो असंग रूप से भगवान श्री राम के साथ रहते हैं उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि आप बीच बाजार से गुजरते हैं पर यदि आपको कोई वस्तु खरीदने नहीं है तो आपको फिर कोई दुकान दिखाई नहीं देती है इसी तरह से लक्ष्मण जी का अपना कोई लक्ष्य नहीं है इसलिए उन्हें भगवान श्री राम के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता है जनक महाराज की पुष्प वाटिका में एक सखी जानकी जी से विलग इसलिए हुई है कि वह भगवान श्रीराम को उनसे मिलाना चाहती है उसका अपना कोई उपलक्ष नहीं है रामचरितमानस में जो भी द्वेत दिखाई देता है वह अद्वैत के लिए ही है
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