ads header

Breaking News

विष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के शंखनाद से गूंजने लगी है दुनिया

 दुनिया में भारत की मानवता का डंका निरंतर तेज होता जा रहा है। तुर्की और सीरिया में आये भूकम्प से हुई तबाही में प्रधानमंत्री ने दुश्मन के साथी को सबसे पहले सहायता की भेजकर संसार का दिल जीत लिया है। प्राकृतिक आपदाकाल में चिकित्सा और राहत सामग्री ही नहीं भेजी बल्कि विशेषज्ञों के दलों को भी सक्रिय कर दिया। कराहती मानवता पर भारतीय मरहम लगाया जा रहा है। भारतीय सेना का सेवावृत आज विदेशी धरती पर परचम फहरा रहा है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्'  के आदर्श वाक्य की सजीव व्याख्यायें हो रहीं हैं। मुस्लिम देशों ने भी अब मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करना शुरू कर दी है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका ने भी रूस और यूक्रेन के मध्य चल रहे युध्द में भारत की मध्यस्थता को एक मात्र विकल्प के रूप में निरूपित किया है। इग्लैण्ड को पछाडकर दुनिया की पांचवी सुदृढ अर्थव्यवस्था वाले देश का पमगा पाने वाले भारतीय आज समूची मानव जाति के लिए आदर्श बनते जा रहे हैं। देश के अन्दर और बाहर एक साथ विकाससम्मान और सहयोग के लिए उदाहरण बनते नेतृत्व को घेरने के लिए भितरघातियों व्दारा चक्रव्यूह पर चक्रव्यूह बनाये जा रहे हैंरणक्षेत्र तैयार किये जा रहे हैं और हो रहे हैं आम आवाम को गुमराह करने के प्रयास। दिल्ली के रामलीला मैदान में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने अपने 34 वें अधिवेशन में इस्लामोफोबियासमान नागरिक संहितामुस्लिम पर्सनल लापिछडे वर्ग के मुसलमानों हेतु आरक्षणमदरसों के सर्वेक्षण सहित कश्मीर जैसे मुद्दों पर प्रस्ताव पारित किये है। इस दौरान जमीयत ने अदालतों व्दारा तीन तलाकहिजाब आदि मामलों में दिये गये फैसलों पर प्रश्नचिन्ह अंकित करते हुए सरकार को धमकी तक दे डाली। उसने कहा कि समान नागरिक संहिता लागू होने से देश की एकता और अखण्डता पर भी असर पडेगा। स्वाधीनता के बाद तत्कालीन कर्णधारों ने देश को विभाजनकारी जख्म देते हुए मुस्लिम पर्सनल लाहिन्दू ला जैसे कानून लागू किये थे। तुष्टीकरण की नीतियां बनाईं थी। सम्प्रदायगत से लेकर जातिगत खाइयों को गहरा करने की गरज से व्यवस्थायें दी गईं थी। गोरों के इशारों पर उनकी ही धरती पर हमारे देश का भाग्य लिखा गया था। वही संविधान के रूप में निरीह नागरिकों पर थोप दिया गया जिसे आम नागरिक पढ भी नहीं सकता था। शोषण के विरुध्द न्याय की गुहार लगाने वाले को आज भी उच्च और उच्चतम न्यायालयों में अपनी आवाज उठाने के लिए किसी अंग्रेज की जरूर पडती है। स्वाधीनता के बाद दिये गये जख्म आज नासूर बनकर बह रहे हैं जिसे देशद्रोहियों की जमात नित नये रूप में परोस देती है। धार्मिक स्वतन्त्रता से लेकर अभिव्यक्ति की आजादी तक के विभिन्न प्राविधानों की लचर व्यवस्था जहां समाज के अन्तिम छोर पर बैठे निरीह व्यक्ति को असहाय बन रही है वहीं चालबाजों के लिए रक्षा कवच बनकर खडी हो जाती है। राष्ट्रद्रोहियों के लिए रात को भी न्यायालयों के दरवाजे खोलने पडते हैं जबकि शोषण से जरजर हुई काया की चीखें नक्कारखाने में तूती की तरह दबकर रह जाती है। समान नागरिक संहिता लागू होते ही सभी नागरिकों को एक से अधिकार मिलेंगेएक से कर्तव्यों का पालन अनिवार्य हो जायेगाविभेदकारी नीतियों की पटाक्षेप होगा और समाप्त होगा होगा जन्म के आधार पर लाभ पाने का अधिकार। हरामखोरीमक्कारी और राष्ट्रघाती आदतों पर कुठाराघात होते ही देश के अंदर मौजूद विदेशी इशारों पर नाचने वालों को मेहनतकशशान्तिप्रिय और राष्ट्रवादी बनना ही पडेगा। घुसपैठियों को मतदाता बनाकर सत्ता-सुख पाने वाले षडयंत्रकारियों को आइना दिखाने वाली यह संहिता जहां कट्टरपंथियों की नकेल कसेगीवहीं विदेशों में बैठे उनके आकाओं को भी बेनकाब करने का धरातल तैयार करेगी। दोहरी नीतियों में बटा देश जब तक समान कानून को अंगीकार नहीं करेगा तब तक फूड-डालोराज-करो की नीतियों पर चलकर नकारात्मकता परोसने वाले सत्ता लोलुपों को नस्तनाबूत नहीं किया जा सकता। राजनैतिक दलों के संरक्षण के कारण ही सार्वजनिक मंचों से देश की एकता और अखण्डता को प्रभावित करने की धमकी देने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं होती। कभी थोडे समय के लिए पुलिस हटा लेने की चुनौती दी जाती है तो कहीं समान नागरिक संहिता लागू होने पर गम्भीर परिणामों चेतावनी के प्रहार होते है। संख्या बल के निरंतर बढते ही शब्दों के आकार बदलने लगे हैंवाक्यों का माधुर्य समाप्त होने लगा है और की जाने लगी हैं मनमानी फरमाइशें। कश्मीर जैसे मुद्दों पर जमीयत उलेमा-ए-हिन्द जैसे संगठन निर्णय देने लगे हैं। वहीं दूसरी ओर देश के प्रधानमंत्री अपनी राष्ट्रवादी नीतियों के तहत दाऊदी बोहरा समुदाय के अलजामी तुस-सैफियाह के एक जलसे में न केवल शिरकत करते हैं बल्कि चार पीढियों से स्वयं के जुडे होने का खुलासा भी करते हैं। बोहरा समुदाय उत्तर मिस्र की धरती से 11 वीं शताब्दी में भारत में आया था। पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के वंशजों के सिध्दान्तों पर कायम यह समुदाय आज दो भागों में विभक्त है। सुलेमानी बोहरा का मुख्यालय यमन में है जबकि दाऊदी बोहरा का मुख्यालय मुम्बई में है। इस जलसे में देश की वास्तविक धर्म निरपेक्षता सामने आई है। राष्ट्र धर्म का खुलकर शंखनाद हुआ। जबकि इसी धरती पर गोत्रपरिधान और परम्पराओं के प्रदर्शन करके वोट बैंक में इजाफा करने वाले गिरगिटों ने हमेशा ही राष्ट्रहित के मुद्दों को नस्तनाबूत करने की कोशिशें की हैं। सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर सेना की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले हर मोर्चे पर टुकडे-टुकडे गैंग के साथ कदम ताल करते रहे हैं। सत्ता हथियाने के लिए संकीर्ण मानसिता को अंगीकार करने वालों को व्यक्तिगत स्वार्थ की परिधि से बाहर निकालने के लिए अब आम नागरिकों को ही कसना होगी कमरतभी राष्ट्रवादी नीतियों पर चलकर संसार का अपेक्षाओं पर खरा उतर सकेगा भारत। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।


No comments