ads header

Breaking News

करण -हर एक प्रकृति के दश करण (अवस्थाएं) होते हैं, उन्हीं का नाम करण है। उनके नाम-बंध, उत्कर्षण, संक्रमण, अपकर्षण, उदीरणा, सत्त्व, उदय, उपशम, निधत्ति और निकाचना।

 बंध -कर्मों का आत्मा से संबंध होना अर्थात् मिथ्यात्वादि परिणामों से जो पुद्गल द्रव्य का ज्ञानावरणादिरूप होकर परिणमन करना, जो कि ज्ञानादि का आवरण करता है, वह बंध है।

 उत्कर्षण -जो कर्मों की स्थिति तथा अनुभाग का बढ़ना है, वह उत्कर्षण है।

 संक्रमण -बंधरूप प्रकृति का दूसरी प्रकृतिरूप परिणमन कर जाना।

 अपकर्षण -स्थिति तथा अनुभाग का कम हो जाना।

 उदीरणा -उदयकाल के बाहर स्थित अर्थात् जिसके उदय का अभी समय नहीं आया है, ऐसा जो कर्म द्रव्य उसको अपकर्षण के बल से उदयावली काल में प्राप्त करना उदीरणा है।

 सत्त्व -पुद्गल का कर्मरूप रहना सत्त्व है।

 उदय -कर्म का अपनी स्थिति को प्राप्त होना अर्थात् फल देने का समय प्राप्त हो जाना उदय है।

 उपशान्त -जो कर्म उदयावली से प्राप्त न किया जाये अर्थात् उदीरणा अवस्था को प्राप्त न हो सके, वह उपशान्तकरण है।

 निधत्ति -जो कर्म उदयावलि में भी प्राप्त न हो सके और संक्रमण अवस्था को भी प्राप्त न हो सके, उसे निधत्तिकरण कहते हैं।

 निकाचना -जिस कर्म की उदीरणा, संक्रमण, उत्कर्षण और अपकर्षण, ये चारों ही अवस्थाएं न हो सकें, उसे निकाचितकरण कहते हैं।

यह निकाचित कर्म प्राय: फल देकर ही छूटता है, इसके बंध में कारण बतलाये गये हैं कि देव, शास्त्र गुरु की आसादना आदि करने से ऐसी जाति का कर्म बंध जाता है।


इन कर्मों की बंध, उदय और सत्त्व अवस्थाएं अधिक प्रसिद्ध हैं।


 ।।बंधयोग्य प्रकृतियाँ।। 


५ बंधन, ५ संघात ये ५ शरीर के साथ अविनाभावी हैं अत: इन्हें शरीर में सम्मिलित कर दीजिए, तब १५-१०=५ ही रह गई, दस घट गई। ५ वर्ण, ५ रस, २ गंध और ८ स्पर्श इन २० को ८ में ही शामिल कर दीजिए तथा दर्शन मोहनीय के ३ भेद में मिथ्यात्व का ही बंध होता है। सम्यक्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति का बंध नहीं होता है अत: ये दो घट गईं, मतलब १०+१६+२=२८, १४८-२८ घटने से १२० प्रकृतियाँ ही बंध योग्य हैं।


 ।।उदय योग्य प्रकृतियाँ।। 


बंध योग्य १२० में सम्यक्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति मिला देने से १२२ प्रकृतियाँ उदय योग्य होती हैं।


 ।।सत्त्व प्रकृतियाँ।। 


ऊपर कही हुई १४८ प्रकृतियाँ सभी सत्ता में रहने योग्य हैं।

गुणस्थान, मार्गणाओं की अपेक्षा इन प्रकृतियों का बंध, उदय, सत्त्व विशेष रूप से गोम्मटसार कर्मकाण्ड और पंचसंग्रह आदि ग्रंथों से समझना चाहिए।


No comments