नौगांव के सुप्रसिद्ध धौर्रा मंदिर में पंचदिवसीय रामकथा का समापन
नौगांव के सुप्रसिद्ध धौर्रा मंदिर में पंचदिवसीय रामकथा का समापन
जीव तो निमित्त मात्र है, कर्ता तो ईश्वर है : पं. श्री उमाशंकर व्यासछतरपुर। नौगांव के सुप्रसिद्ध धौर्रा मंदिर में पंचदिवसीय रामकथा के समापन अवसर पर प्रवक्ता पं. श्री उमाशंकर व्यास जी ने कहा कि संसार में जीव निमित्त मात्र है, कर्ता-धर्ता तो ईश्वर है। हनुमान जी द्वारा लंका दहन प्रसंग की तात्विक विवेचना करते हुए व्यास जी ने कहा कि भगवान राम ने उन्हें सिर्फ सीता जी को खोजकर भगवान के बल और विरह की कथा सुनाकर वापस आने को कहा था पर रावण की वाटिका में त्रिजटा द्वारा मां सीता को लंका दहन का सपना सुनाया गया। तभी हनुमान जी समझ गए कि भगवान उनके माध्यम से लंका दहन कराना चाहते हैं। इसीलिए वह मेघनाथ के पाश में बंधकर रावण के दरबार में हाजिर हुए और उन्होंने अपने बंधन खोलने का भी प्रयास नहीं किया। पर रावण ने खुद घी और कपड़ा लाकर लंका दहन की व्यवस्था कर दी। इस प्रसंग को महाभारत के कृष्ण अर्जुन संवाद से जोड़ते हुए भगवान कृष्ण की दिव्य दृष्टि से अर्जुन ने पहले ही देख लिया था कि भीषम, द्रोण, कर्ण आदि सभी मारे जा चुके हैं। उसे तो अब मात्र निमित्त बनना था। व्यास जी ने कहा कि हम हर अच्छी और बुरी घटना में मनुष्य का हाथ देखते हैं जिस कारण राग और द्विवेश उत्पन्न होता है पर सबके पीछे ईश्वर को देखेंगे तो संसार में किसी से राग और द्विवेश नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि किसी न किसी नाते भगवान से जुड़े रहिए। सीता जी श्रृंगार भाव से, हनुमान जी दास्य भाव से, सुग्रीव और विभीषण सखा भाव से, कौशल्या और दशरथ वात्सल्य भाव से तथा रावण और राक्षस शत्रु भाव से भगवान राम से नाता बनाये रखते हैं। परिणाम स्वरूप राक्षस मारे जाने के बावजूद प्रभु को पा लेते हैं। उन्होंने कहा कि भूल तो जीव से होती है भगवान तो सभी पर कृपा करते हैं।
उमाशंकर व्यास जी ने कहा कि जन्म देने वाली जननी होती है माता तो हम किसी को भी संबोधित कर सकते हैं पर हनुमान जी महाराज सीता जी को मां और जननी कहकर संबोधित करते हैं और प्रसंग भी तब होते हैं जब सीता जी उन्हें अपना पुत्र कह देतीं हैं। सीता जी मसक जैसा रूप धारण किए हनुमान जी के उस वात्सल्य पर रीझ जाती हैं जब वह कहते हैं कि भगवान राम बानरों के साथ लंका आकर रावण को पराजित कर आपको अयोध्या ले जाएंगे। सीता जी के आश्चर्य व्यक्त करने पर हनुमान जी विराठ स्वरूप रखते हैं तब प्रसन्न होकर सीता जी उन्हें पांच अनमोल आर्शीवाद देती हैं वह आर्शीवाद पंचतत्व का प्रमाण है। वायु रूपी बल, जल रूपी शील, अग्नि रूपी अजिर, आकाश रूपी अमर तथा पृथ्वी रूपी गुणनिधान का आर्शीवाद देकर नया शरीर प्रदान कर देती हैं और जब वह कहती हैं कि भगवान राम स्वयं हनुमान जी का ध्यान रखेंगे तो यह उनमें प्राण प्रतिष्ठा करने जैसा है। हनुमान जी इससे कृतकृत्य हो जाते हैं जिसका अर्थ होता है जिसे आप अपने जीवन में कोई भी कर्म करना शेष नहीं रहा है। लंका विजय के पहले हनुमान जी सीता जी को निकट जाकर प्रणाम करते हैं तो लंका विजय के बाद दूर से ही प्रणाम करते हैं। व्यास जी ने इसकी तात्विक विवेचना करते हुए कहा कि दुख के समय हमें व्यक्ति के निकट होना चाहिए सुख के समय दूर से भी आनंद ले सकते हैं।
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