गुजरता वक्त ठहरते पल, काव्य संग्रह का हुआ विमोचन
कागज की तलवार से लोहा काटता है साहित्यकार: प्रो. दिनेश कुशवाह
गुजरता वक्त ठहरते पल, काव्य संग्रह का हुआ विमोचनछतरपुर। जाने-माने नेत्र चिकित्सक डॉ. सुरेन्द्र सिंह बुन्देला की पुत्रवधू एवं न्यूरोसर्जन डॉ. यशपाल सिंह बुन्देला की पत्नि डॉ. आराधना सिंह बुन्देला के काव्य संग्रह गुजरता वक्त ठहरते पल का विमोचन किया गया। होटल ओम सांईं राम में आयोजित विमोचन समारोह के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में अवधेश प्रताप ङ्क्षसह विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. दिनेश कुशवाह मौजूद रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कलेक्टर संदीप जीआर ने की। विशेष अतिथियों के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवियत्री मालती श्रीवास्तव, डॉ. सुभाष चौबे, प्रो. बहादुर ङ्क्षसह परमार, पेप्टेक गु्रप के डायरेक्टर नीरज चौरसिया सहित अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
जानकारी के मुताबिक डॉ. आराधना ङ्क्षसह बुन्देला द्वारा लिखित काव्य संग्रह गुजरता वक्त ठहरते पल का विमोचन किया गया। मुख्यय अतिथि प्रो. दिनेश कुशवाह ने काव्य संग्रह की सराहना करते हुए कहा कि आज के भाग-दौड़ भरे जीवन में साहित्य सृजन बहुत बड़ा कार्य है। यह सृजनात्मकता साहित्य से जोड़कर रखती है। उन्होंने कहा कि साहित्यकार कागज की तलवार से लोहा काटने का कार्य करता है। उन्होंने डॉ. आराधना बुन्देला को काव्य संग्रह के लिए शुभकामनाएं दीं।
डॉ. बुन्देला का कार्य चुनौतीपूर्ण, प्रेरणादायी: कलेक्टर
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कलेक्टर संदीप जीआर ने कहा कि एक डॉक्टर का कार्य जिम्मेदारी और चुनौतीपूर्ण होता है। डॉक्टर यदि मेडिकल की किताब लिखे तो शायद उसे आसानी होगी लेकिन पेशे से हटकर साहित्य सृजन करना यह काबिले तारीफ है। उन्होंने कहा कि डॉक्टर आराधना बुन्देला ने अपने क्षेत्र से हटकर पुस्तक लिखी है। उनके इस हौसले ने अन्य लोगों को भी अवश्य रूप से प्रेरणा दी होगी।
कोरोनाकाल की भावनाएं काव्य संग्रह में निकलीं: डॉ. अनुराधा
जानी-मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. आराधना बुन्देला ने अपने काव्य संग्रह गुजरता वक्त ठहरते पल के विमोचन के अवसर पर कहा कि कोरोनाकाल में सबको यह प्रतीत हो रहा था कि शायद अब जिंदगी इतनी ही थी। लॉकडाउन में जो वक्त मिला उस समय की भावनाएं कविता के रूप में बाहर आयीं हैं। इस काव्य संग्रह में रोजमर्रा के जीवन से जुड़े बिन्दु शामिल हैं। खासतौर से नारी उत्थान, देशभक्ति, कृष्ण भक्ति, मां सरस्वती के प्रति भाव, संयुक्त परिवार, नारी-पुरूष की समानता जैसे बिन्दुओं को छूने का प्रयास किया गया है। विमोचन के अवसर पर जो सराहना और हौसला हासिल हुआ वह प्रेरणादायी है। कभी भी साहित्य सृजन पीडि़तों की सेवा के दौरान बाधा नहीं बनेगा। हां यह बात अवश्य है कि मरीजों की संवेदनाएं कविता में अवश्य आएंगी।
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